Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती


परिवर्तन

(५)
विवाह के कुछ दिन बाद चम्पा के पति नवलकिशोर के मित्र सन्तोष ने नवलकिशोर को चम्पा समेत अपने घर आने का निमंत्रण दिया । और यह लोग सन्तोष कुमार को बिना किसी प्रकार की सूचना दिए ही उसके घर के लिए रवाना हो गए; सूचना न देकर यह लोग अचानक पहुँचकर सन्तोष कुमार और बूढ़ी अम्मा को आश्चर्य में डाल देना चाहते थे। चम्पा और नवलकिशोर अलीगढ़ के लिए रवाना हो गए। रास्ता बड़े आराम से कटा । गर्मी तो नाम को न थी । रिमझिम-रिमझिम बरसता हुआ पानी बड़ा ही सुहावना लग रहा था ।
जब ये लोग अलीगढ़ स्टेशन पर उतरे, उस समय कुछ अँधेरा हो चला था। गाँव स्टेशन से पाँच-छै मील दूर था; इसलिये नवल ने सोचा कि स्टेशन पर ही भोजन करके तब गांव के लिए रवाना होंगे। चम्पा को सामान के पास बिठाकर नवल भोजन की तलाश में निकला । हलवाई की दुकान पर सब चीजें तो ठीक थीं, पर पूरियाँ ज़रा ठंडी थीं। वह ताज़ा पूरियाँ बनवाने के लिये वहीं ठहर गया।
इधर सामान के पास अकेली बैठी-वैठी चम्पा का जी ऊबने लगा । वह एक पुस्तक निकाल कर पढ़ने लगी । थोड़ी देर के बाद ही एक आदमी ने आकर उससे कहा कि "बाबू जी होटल में बैठे हैं अपको बुला रहे हैं।"
'पर वे तो खाना यहीं लाने वाले थे न ?
'होटल यहाँ से करीब ही है। वे कहते हैं कि आप वहीं चल के भोजन कर लें । कच्चा खाना यहाँ लाने में सुभीता न पड़ेगा।'
उठते-उठते चम्पा ने कहा--सामान के पास कौन रहेगा ?
'सामान तो कुली देखता रहेगा, आप फिकर न करें; १० मिनट में तो आप वापिस आ जायंगी ।' क्षण भर तक चम्पा ने न जाने क्या सोचा; फिर उस आदमी के साथ चल दी।
स्टेशन से बाहर पहुँचते ही उस आदमी ने पास के एक मकान की तरफ़ इशारा करके कहा, " वह सामने होटल है; बाबू जी वहीं बैठे हैं।'
चम्पा ने जल्दी-जल्दी पैर बढ़ाए। पास ही एक मोटर खड़ी थी उस आदमी ने पीछे से चम्पा को उठाकर मोटर पर डाल दिया; मोटर नौ दो ग्यारह हो गई । चम्पा का चीखना-चिल्लाना कुछ भी काम न आया ।

आध घंटे के बाद जब नवल खाना लेकर लौटा तो चम्पा का कहीं पता न था । इधर-उधर बहुत खोज की। गाड़ी के एक-एक डिब्बे ढूंढ डाले, पर जब चम्पा कहीं न मिली, तो लाचार हो पुलिस में इत्तिला देनी पड़ी । परदेश में वह और कर ही क्या सकता था ? किन्तु वहाँ की पुलिस भी, ठाकुर साहब द्वारा कुछ चाँदी के सिक्कों के बल पर, सब कुछ जानती हुई अनजान बना दी जाती थी। फिर भला एक परदेशी की क्या सुनवाई होती ? जब नवल किसी भी प्रकार चम्पा का पता न लग सका, तो फिर वह संतोषकुमार के गाँव भी न जा सका। वहीं धर्मशाले में ठहर कर चम्पा की खोज करने लगा।

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